Tuesday, June 30, 2020

Love and relation

Love and relationship seem similar in experience but in reality they are opposing elements of each other. When we talk of relationships, a picture  relationship starts making its own place. It is most surprising that these two have been with each other since antiquity, despite having opposing elements. Actually, a misconception has been brought to our mind that both of these are nutritious to each other and due to this mentality we do not even know and we see love connecting every relationship with love. 
It would not have been a mistake if we would have accepted the form of relationship and love the way we thought, if we had put the form into practice. But we accept the defined form of relationship and love, but in practice we bring its unfriendly form. Love is the defining form of love. Even if there is a right in love, then the right to love is only love, but you believe that the right to love is a relationship and you make mistakes here. We cannot include rights in love, but when a relationship comes in love, the relationship automatically brings the authority. And whenever there is a right in love, then we cannot keep love as pure love, because it is absolutely necessary to have duty in love while the authority chooses us with duty. This does not mean that the right always reduces the duty. But it is also true that the coming of the right has a negative effect on the duty. And when the rights come due to the relationship then there will be a very negative effect. is..
If we want to accept the relationship in its original form, then we have to know the importance of love in the relationship and love has to be put into practice. But we have to take the authority out of love. As long as love and rights are together, the relationship and love will be the same, even after they seem similar. Love and relationship can be nurturing each other only after the authority is over with love.
                                           Suraj Kumar

प्रेम और रिश्तें।।

प्रेम और रिश्ता अनुभव में एक जैसा लगता है लेकिन वास्तव में ये एक दूसरे के विरोधी तत्व है। जब हम रिश्तों की बात करते है  तो मन में प्रेम का चित्र खुद ब खुद खींच जाता है और जब हम प्रेम की बात करते हैं तो रिश्ता खुद अपना स्थान बनाने लगती है । यह सबसे आश्चर्य की बात है कि यह दोनों विरोधी तत्व होने के बावजूद पुरातन से ही एक दूसरे के साथ रहे हैं। असल में एक गलतफ़हमी हम लोगों के मन में घर कर गई है कि यह दोनों एक दूसरे के पोषक हैं और इसी मानसिकता के कारण हमें पता भी नहीं चलता और हम प्रेम को रिश्ते से हर रिश्ते को प्रेम से जोड़कर देखते हैं ।।
यह गलती नहीं होती अगर हम रिश्ता और प्रेम को जिस रूप से सोचते हैं जिस रूप को स्वीकारते हैं अगर उसी रूप को व्यवहार में लाते । लेकिन हम रिश्ता और प्रेम के परिभाषिक रूप को तो स्वीकारते हैं लेकिन व्यवहार में हम इसके अपभ्रंश रूप को लाते हैं । प्रेम का परिभाषिक रूप है प्रेम मेंअधिकार नहीं होता है। अगर प्रेम में अधिकार होता भी है तो प्रेम का अधिकार सिर्फ प्रेम होता है लेकिन आप प्रेम का अधिकार रिश्ता मानते हैं और आप यहीं पर गलती कर बैठते हैं ।। हम प्रेम में अधिकार को सम्मिलित नहीं कर सकते हैं लेकिन जब प्रेम में रिश्ता आता है तो रिश्ता खुद-ब-खुद अधिकार को लेकर आता है। और जब भी प्रेम में अधिकार आएगा तो फिर हम प्रेम को शुद्ध प्रेम नहीं रख सकते।।क्योंकि प्रेम में कर्तव्य का होना नितांत आवश्यक है जबकि अधिकार हमें कर्तव्य से च्युत करता है।। इसका मतलब ये बिल्कुल भी नही है कि अधिकार कर्तव्य को हमेशा ही कम करता है।लेकिन ये भी सही है कि अधिकार के आने से कर्तव्य पर नकारात्मक असर होता है।।और जब अधिकार रिश्ता के कारण आए फिर तो कुछ ज्यादा ही नकारात्मक असर होता है।।
अगर हम रिश्ते को मूल स्वरूप में स्वीकार करना चाहे फिर हमें रिश्ता में प्रेम के महत्व को जानना तो होगा और प्रेम को व्यवहार में भी लाना होगा। लेकिन हमें प्रेम से अधिकार को बाहर निकालना पड़ेगा ।। जब तक प्रेम और अधिकार एक साथ होंगे तो रिश्ता और प्रेम एक जैसा लगने के बाद भी विरोधी तत्व ही होंगे। प्रेम से अधिकार के खत्म हो जाने के बाद ही प्रेम और रिश्ता एक दूसरे के पोषक हो सकते हैं।।
                                           सूरज कुमार

Monday, June 29, 2020

कोरोना।।

  • इस कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए सरकार के द्वरा किया गया लोकडौन इसका कोई उचित उपाय नहीं हैं।
  • इस लोकडौन के माध्यम से हम सिर्फ कोरोनार को nest जनरेशन में जाने का मौका दे सकते है।।इस लोकडौन का सिर्फ इतना ही फायदा है।। लेकिन ये फायदा भी बहुत बड़ा फायदा है।।
  • हम अगर इस कोरोना के संक्रमण और डेथ का अनुपात का ग्राफ देंखे तो हम पाते हैं कि जितना ज्यादा खतरनाक ये 
  • सुरुआत में था अब उतना खतरनाक नही है ।ज्यों ज्यों ये अगले genration में जा रहा है इससे रिकवरी का रेट बढ़ रहा है।।
मतलब ये की अगर इसका 15 , 20 जनरेशन तक हम अपने आपको इससे बचा कर रख सकें तो फिर ये संक्रमण हमारे लिए खतरनाक साबित नही होगा।।
हम अब ये बिल्कुल न सोचें कि हमे ये संक्रमण नही होगा।। ये संक्रमण सभी को होगा लेकिन इससे ज्यादा डरने की आवश्यकता नही ।।अगर हम अपने प्रतिरक्षा तंत्र की शक्ति का विकाश करे तो हम आसानी से इससे निबट सकते है।।वैसे ज्यों ज्यों समय बीतता जाएगा कोरोना उतना ही ज्यादा जनरेशन क्रॉस करेगी और ये फिर कम घातक होगी।।इसीलिए हमे अब अपना इम्युनिटी को बढ़ाने पर जोड़ देना पड़ेगा।अभी हमे इस बात पर भी ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा कि हम अपने किडनी लिवर जैसे वाइटल अंग का ज्यादा ख्याल रखें ।।



All you need is love

 “All You Need is Love.” He additionally beat each of his wives, deserted one of his children, verbally abused his homosexual Jewish supervi...